वैसे तो , बिहार बहुत सारी अनोखी चीजों के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है, परन्तु सिलाव खाजा की बात ही निराली है।
खाजा का वास्तविक अर्थ
खाजा का वास्तविक अर्थ "खूब खा" और "जा" है जिसकी उत्पत्ति का इतिहास काफी पुराना है।
सिलाव का खाजा एक प्रकार का मिठाई है जो 52 परतो में बना होता है। खासकर बिहार के नालंदा जिला में इसकी बड़ी महत्त्व है, यही कारण है मांगलिक कार्य में इसका इस्तेमाल खूब होता है।
सिलाव खाजा कैसा होता है?
सिलाव खाजा की कीमत
सिलाव खाजा का इतिहास
बिहार के इतिहास का अध्ययन करने से पता चलता है कि सिलाव खाजा बुद्ध काल में शुरू हुआ था, जो अभी भी जारी है, सिलाव खाजा अद्भुत कला का प्रदर्शन करता है जो इसे सभी मिठाइयों से अलग बनाता है।
ऐसा माना जाता है कि काली शाह के परिवार ने खाजा की परंपरा को बरकरार रखा, आज भी इस परिवार के लोग खाजा के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। काली शाह के नाम से कई खाजा दुकानें हैं, जो काली शाह के रिश्तेदार हैं। कुशवाहा परिवार ने भी खाजा व्यवसाय को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अभी सिलाव में 70 से 80 खाजों की दुकान है, जिनका अनुमानित खाजा का व्यापर लगभग 7 करोड़ है।
सिलाव खाजा के व्यवसाय को मिली उद्योग का दर्ज़ा
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लंबे और अथक प्रयासों के कारण, खाजा के व्यवसाय को वर्ष 2015 में उद्योग का दर्जा मिला। सिलाओँ के खाजा को उद्योग का दर्ज़ा प्राप्त होने के बाद इसके व्यवसाय में वृद्धि देखी गयी है।
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